Saturday 27 February 2016

ताक़त चाहिए

       फ़िलबदीह 145 से

ज़िन्दगी को और हिम्मत चाहिए।
अब अदब की ही इनायत चाहिए।

नेक नीयत मर्द के हो ख़ून में,
औरतों को ये हिफाज़त चाहिए।

एक पक्की सैकड़ों कच्ची न हों,
सब घरों में एक सी छत चाहिए।

लखपती हैं जात उनकी ख़ास है,
इसलिये उनको मुरव्वत चाहिए।

शायरी में बादशाहत का जुनूँ,
ऐ ख़ुदा अब और ग़ुरबत चाहिए।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
8896865866

Thursday 25 February 2016

कुछ भी नहीं


वक़्त,आँसू ,शायरी, ग़म, मयक़दा कुछ भी नहीं।
दर्द जो तुमने दिया उसकी दवा कुछ भी नहीं।

एक पत्ता आ गया उड़ कर हवा के साथ में।
और पतझड़ के सिवा उसमें लिखा कुछ भी नहीं।

भूख से क्यूँ मर गया कोई ख़ुदा के सामने,
या ख़ुदा सबसे बड़ा या फिर ख़ुदा कुछ भी नहीं।

खा गया ईमान तक जो भूख लालच की लगी,
ख़ाक में इंसान की फिर  क्यों मिला कुछ भी नहीं।

इश्क़ ने सिखला दिए हमको हुनर कुछ काम के,
हम समझ सब कुछ गए उसने कहा कुछ भी नहीं।

ऐब ख़ुद में हैं उन्हें तू दूर कर खुद से ज़रा,
तू जिसे दिखला रहा वो आइना कुछ भी नहीं।

भर गए पन्ने कई जो अश्क़ निकले याद में,
रोशनाई या कलम मैंने छुआ कुछ भी नहीं।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
08896865866

बासंती हाइकु

पाती को चूम
गदराया गोधूम
किसने भेजी?

हँसी तितली
दिलफेंक पलाश
खो बैठा होश

कोई बौराया
देख चुनर पीली
रंगीले दिन

Sunday 21 February 2016

गौमाता

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
तुम्हारी हो सदा ही जय कहें समवेत गौमाता।
पड़े शुभ पग जहाँ पर भी सुखद संकेत गौमाता।

बनें मन और तन दोनों शरण में जो तुम्हारी हो,
तुम्हें माँ मान पीता पय तुम्हारा श्वेत गौ माता।

जहाँ तू है वहाँ भूखा भला कैसे रहे कोई?
धरा उर्वर बना दे तू जहाँ हो रेत गौमाता।

तुम्हारे पञ्च अमृत से निरोगी हो रहे घर भी,
तुम्हारी ही कृपा से अन्न उगलें खेत गौ माता।

घरों में स्वस्थ्य बच्चे खेलते हैं राम लक्ष्मण-से
हमारा गाँव तुमसे ही बना साकेत गौमाता।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Saturday 20 February 2016

जायका है

समीक्षार्थ:

मुझे अपना बनाना चाहता है।
समझ ले एकतरफ़ा रास्ता है।

मुझे ठोकर लगी उनको ख़बर है,
तभी से रुख़ ज़रा बदला हुआ है।

ख़ुदा से दुश्मनी कैसे नहीं हो?
मियां उसका जवाँ लड़का मरा है।

तुम्हारी बात उम्मीदों भरी है,
जवाँ तासीर उम्दा ज़ायका है।

हमारी गुड़ तुम्हारी चॉकलेटी,
ज़ुबाँ में वक़्त वाला फासला है।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.

रू ब रू


प्यास मिटती रहे तुम रहो रू-ब-रू।
और दिल की नहीं एक भी आरजू।

तू समन्दर नहीं तो बता और क्या?
बादलों को रही क्यूँ तिरी जुस्तजू।

दे गई ये मुहब्बत कई एक ग़म,
सब उड़ा ले गई फूल के रंग बू।

याद मुझको रहीं बात बस यार दो।
एक बस यार रब और बस एक तू।

कौन सा नूर है ऐ ख़ुदा प्यार में,
ये जहाँ भी रहे फैलता चार सू।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.

Friday 19 February 2016

अच्छा है

आपका एक काम अच्छा है।
ग़ैर से भी सलाम अच्छा है।

प्रेम का पाठ जो पढ़ाता है,
आपका वो कलाम अच्छा है।

रौब जो नोट का दिखाते हैं।
दूर से राम राम अच्छा है।

अब न दुश्मन ज़ुबान खोलेगा,
मुल्क़ का अब निज़ाम अच्छा है।

आपकी पूछ हर जगह होगी,
आपका तामझाम अच्छा है।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.

Thursday 18 February 2016

ज़माना भी

हमारा क्या करेगा ये कहो बिगड़ा जमाना भी।
हमें मालूम है छत से मियां पत्थर चलाना भी।

हमारा शौक है ये अम्न के हम फूल बाँटें तो,
गली से बाग़ की अपना शग़ल काँटे हटाना भी।

तुम्हारी इस ज़ुदाई से पता ये भी चला मुझको,
बड़ा मुश्क़िल ग़मों के वक़्त का बोझा उठाना भी।

कमाई के हुनर सँग ही शहर से सीख आया है,
हमारी आँख का तारा हमें आँखें दिखाना भी।

मधुर मुस्कान के पीछे छिपा ली बेवफाई भी,
बहुत आसान है बेशक मुझे उल्लू बनाना भी।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
  फतेहपुर

हाइकु

मेरा सृजन
अमर लाइब्रेरी
पाठक मन

देह मिटेगी
आत्मा देगी सन्देश
कविताओं में

Tuesday 16 February 2016

नमिता भरद्वाज जी की कला को समर्पित


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ब्रश ने तुम्हारी
उंगलियां पकड़
सीख लिया चलना
भावनाओं ने सीख लिया
रंगों में ढलना
उतर आये कैनवस पर
कुदरती अहसास
यूँ ही नहीं हो जाती होगी
हर चित्र में एक कहानी
जीना पड़ता होगा
उसे उकेरने तक
एक पूरी ज़िंदगानी
ठीक वैसा पवित्र है
चित्र बनाना
जैसा सच कहना
खुशबू सा उड़ना
नदी सा बहना
कुदरत हाथो में लकीरो से
लिखती है सब कुछ
और कला कागज़ पर.....
लकीरों से
उतार देती है कुदरत
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून

रोशनाई

2122 2122 2122 212
या मुझे तू ऐ ख़ुदा अब इश्क़ का अंज़ाम दे।
या मुझे बेइंतेहा इस दर्द से आराम दे।

आदमी अब कौन है अपनी नज़र में सब ख़ुदा,
अब फ़क़ीरी से अलग ही और कुछ तू काम दे।

मुफ़लिसी के ये अँधेरे अब सहे जाते नहीं,
तू उजाले दे न दे बस मौत की इक शाम दे।

ग़ैरमुमकिन है नहीं कुछ दौर है बाज़ार का,
चीज़ हर मिल जायगी बस तू मुनासिब दाम दे।

और तुझसे कुछ नहीं अब माँगता हूँ बस ज़रा
रोशनाई दे कलम में कुछ अदब में नाम दे।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
8896865866

हाइकु

बनते नग
इससे पहले ही
बहके पग

प्रचार बोध
समर्थन से ज़्यादा
ठीक विरोध

मन का मैल
फैला रहा दुर्गन्ध
हवा में फैल

झाँकता तन
फटा ब्लाउज देख
फैले हैं फन

मौन हैं गुरु
जेएनयू में हिट
दूजा ही 'गुरु'?

प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.

Friday 12 February 2016

हमारा वीर हनुमन


सुनो धड़कन नहीं है ये मुहब्बत का इशारा है।
इजाज़त दो शरारत की अभी ये दिल कुँवारा है।

किसी से बैर की मुमकिन नहीं है धूल मिल जाये,
किताबों ने सलीके से हमारा मन बुहारा है।

कई तिकड़म किये तब जा कहीं जीते चुनावी रण,
सियासतदां बने फिरते कहाँ का तीर मारा है?

कहीं पर जाति की चर्चा कहीं पर धर्म का नारा,
सियासत की नदी में तब कहीं मिलता किनारा है।

बढ़ाई शान जिसने देश की उसको नमन करता
हमारा वीर हनुमन देश भारत का दुलारा है।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.

Wednesday 10 February 2016

एक साँचे में

2122 2122 2122 212

ख़ास दरवाजे उन्हीं के वास्ते खुलते रहे।
जो वहाँ दरबान से कुछ ख़ास हो मिलते रहे।

सरफ़रोशी के समय ये राज़ खुलकर आ गया,
साथ शेरों के मियां गीदड़ कई पलते रहे।

सीख पाये वो नहीं अब तक सड़क पर दौड़ना,
लोग जो ताउम्र बस फुटपाथ पर चलते रहे।

सांप होते तो सँभल जाता समय रहते मगर,
आस्तीनों में 'मेरे कुछ जोंक  थे पलते रहे।

कुछ पढ़ाई मौज मस्ती और फिर बेकार हैं,
एक साँचे में अधिकतर नौजवाँ ढलते रहे।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून,

मुक्तक

ये तो खुशबू है हवाओं में सफर करती है
दिल के दरिया में बहुत तेज़ लहर करती है
ये मुहब्बत है इसे तुम न छुपा पाओगे
आग की आँच बहुत दूर असर करती है

Tuesday 9 February 2016

वैलेंटाइन स्पेशल दोहे

वैलेंटाइन स्पेशल दोहे

अपने अपने तौर से,सब कर रहे प्रपोज।
कुछ को मुस्कानें मिलीं, कुछ ने पाई डोज।

मन में ही करता रहा उसको रोज़ प्रपोज।
मुझसे पहले दे गया कोई 'रेड 'रेड रोज।

कैसे करूँ प्रपोज मैं, राह बताओ आप?
भाई है बजरंगिया, शिवसेना में  बाप।

फूलों वाला कह रहा, ले लो सस्ते रोज।
सौ रुपये के नोट में, दस को करो प्रपोज।

दो जगहों पर शिफ्ट है, लव का सब सामान।
ग्रीटिंग वाली गैलरी, फूलों की दूकान।

लैला मजनूं हम नहीं, हम हैं गर्ल व ब्वाय।
नाम प्यार का दूसरा, होता है इन्जॉय।

लवर ब्याय हूँ जान ले, कैसे लूँगा चान्स।
जा तू दूजा ढूँढ ले, मेरी है अडवांस।
✒ प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
     फतेहपुर उत्तर प्रदेश
📱 8896865866

Friday 5 February 2016

होता है साहब

1222 1222 1222

वहीं पर वो सितमग़र होता है साहब।
जहाँ पर इश्क़ खंज़र होता है साहब।

ज़रा सा बात कर लेना बुज़ुर्गों से,
किताबी ज्ञान बंज़र होता है साहब।

जहाँ तुमको दिखा इक अश्क़ हो केवल,
वहाँ भी इक समन्दर होता है साहब।

मिला है जो उसे पाकर ज़रा तू हँस,
जुदा सबका मुक़द्दर होता है साहब।

कभी हँसता कभी रोता कभी चुप ही,
इसी का इश्क़ में डर होता है साहब।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उत्तर प्रदेश

Thursday 4 February 2016

शब्द हाइकु

शब्द पर पाँच हाइकु
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

शब्द  सजाते
महफ़िल आपकी
यादें दे जाते।

शब्द सार्थक
बना दें इतिहास
ऐसी ताकत।

शब्द की ईंटें
काव्य की इमारत
भावों की नींव।

शब्द जो देते
घाव बड़े गहरे
शब्द ही भरें।

शब्द तोड़ते
सन्नाटे के पत्थर
मौन की कारा।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उत्तर प्रदेश

शब्द हाइकु

शब्द पर पाँच हाइकु
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

शब्द  सजाते
महफ़िल आपकी
यादें दे जाते।

शब्द सार्थक
बना दें इतिहास
ऐसी ताकत।

शब्द की ईंटें
काव्य की इमारत
भावों की नींव।

शब्द जो देते
घाव बड़े गहरे
शब्द ही भरें।

शब्द तोड़ते
सन्नाटे के पत्थर
मौन की कारा।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उत्तर प्रदेश

Wednesday 3 February 2016

झुका दुबारा

1121 2122 1121 2122
इक बार सह चुका हूँ अब मत सता दुबारा।
अब क्या ख़ता हुई है फिर से बता दुबारा।

जो दूर हो गए तो अब पास भी न आना,
टूटा हुआ जुड़ा है कब आइना दुबारा।

जो ख़्वाब खो गया था फिर मिल गया अचानक,
फिर बाद मुद्दतों के एक ख़त लिखा दुबारा।

हो ज़र्द गिर गए हैं पत्ते सभी शज़र के,
फिर से नए सफ़र को पंछी उड़ा दुबारा।

जो सर 'प्रसून' अब तक अकड़ा रहा अकड़ में,
लाठी पड़ी समय की वो सर झुका दुबारा।

प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उत्तर प्रदेश