सुनो धड़कन नहीं है ये मुहब्बत का इशारा है।
इजाज़त दो शरारत की अभी ये दिल कुँवारा है।
किसी से बैर की मुमकिन नहीं है धूल मिल जाये,
किताबों ने सलीके से हमारा मन बुहारा है।
कई तिकड़म किये तब जा कहीं जीते चुनावी रण,
सियासतदां बने फिरते कहाँ का तीर मारा है?
कहीं पर जाति की चर्चा कहीं पर धर्म का नारा,
सियासत की नदी में तब कहीं मिलता किनारा है।
बढ़ाई शान जिसने देश की उसको नमन करता
हमारा वीर हनुमन देश भारत का दुलारा है।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
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