Wednesday 15 February 2012

एक-एक चूड़ियों पर ।



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उसकी खों-खों का
आदी हो चुका है
पूरा टोला,और उसका परिवार झोल खाती चारपाई भी
उस कृशकाय मृतप्राय को
ढोने से कर देती है इन्क़ार कई बार
लेकिन वो जनाना उँगलियाँ बींध देती हैं बार-बार
जो बाँधे हैं उम्मीद
अभी भी पल्लू में
कहना सुनना
अब वश में नहीं
लेकिन मुरझाती आँखें
अभी भी कहती और
ख़ुद ही समझती रहतीं
नज़रें...
बच्चों की पिचकी आँतों.. नासमझ आँखों से होती हुई आख़िर में थककर
ठहर जाती हैं
असमय झुर्रीदार हुईं
जनाना कलाइयों में बच रहीं सिर्फ़ एक-एक चूड़ियों पर ।

मॉडर्न?

अपनी सफलता पर
गला फाड़कर चीख रहे हैं
कुछ अंग्रेजी शब्दों का
चोला ओढ़कर
मॉडर्न? युवा
खुद को स्थापित करने का
हुनर सीख रहे हैं
प्रोफेशनल होने का अर्थ
मतलब के लिए रिश्ते गढ़ना
और
मतलब के लिए तोड़ना
फिक्र सिर्फ अपनी
या फिर
फ्रेंड सर्किल.....
इससे अधिक कतई नहीं
आध्यात्मिक,राजनीतिक
सामाजिक चिंतन
सुनकर
बिदका लेते हैं मुंह
यह कहकर
सो बोरिंग मैटर
और फिर से मशगूल हो जाते हैं
सन्डे रेस्तरां पार्टी का
प्रोग्राम फिक्स करने में
कुछ हिंदी कुछ अंग्रेजी मिक्स करने में