Thursday 29 December 2016

क्यूँ नहीं लेते

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रिश्तों में रंग फिर से चढ़ा क्यूँ नहीं लेते
गिरते हुए मकाँ को बचा क्यूँ नहीं लेते
वो हँस रहे हैं देख तुम्हें अश्क़ बहाते
ये दर्द दुश्मनों से छुपा क्यूँ नहीं लेते
बाहर जो बात जायेगी तो और बढ़ेगी
आँगन में ही ये बात बना क्यूँ नहीं लेते
मौका है दूरियाँ मिटा के प्यार जगाओ
रूठे जो उनसे हाथ मिला क्यूँ नहीं लेते
भूखा पड़ा जो उसको खिला करके निवाला
है बेशकीमती जो दुआ क्यूँ नहीं लेते
      :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
       फतेहपुर उ.प्र.

Tuesday 27 December 2016

जो दिया था दिल उन्हें गाता हुआ

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जो दिया था दिल उन्हें गाता हुआ
मिल गया वापस मुझे टूटा हुआ
चोरियां उस रात कुछ ज़्यादा हुईं
देर तक जिस रात को पहरा हुआ
इश्क की उलझन न सुलझी यक दफा
हर दफा मैं ही मिला उलझा हुआ
अश्क़ ने अपना तआरुफ़ यूँ दिया
मैं समन्दर,  बूँद में सिमटा हुआ
अब किसी सूरत न होगा वो जुदा
है यूँ मेरी रूह से लिपटा हुआ
   :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
         फतेहपुर उत्तर प्रदेश

Monday 26 December 2016

बरकत करते हैं

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लेकर नेक खयाल अगर हम मेहनत करते हैं
बेशक़ अपनी शोहरत में हम बरकत करते हैं
मंचों पर संजीदा हो कुछ शिरकत करते हैं
कुछ ऐसे भी हैं जो ओछी हरकत करते हैं।
लोग उन्हें कितना नादान समझने लगते हैं
जो हाथों को जोड़ किसी की इज़्ज़त करते हैं।
नाम बुलंदी पर लिख पाना तब ही तो मुमकिन
जब पर्वत पर चढ़ने की हम हिम्मत करते हैं।
अपनी खुशियां दे औरों का ग़म जो ले लेते
लोग फ़रिश्ते बन धरती को ज़न्नत करते हैं।

Sunday 18 December 2016

गीत:मेरी चिता के ऊपर

मेरी चिता के ऊपर पहचान तब बनाना,
जगतारिणी नदी में तब अस्थियां बहाना।
लाखों गये डगर से,
पर मुश्किलें वहीं हैं
बच बच निकल गए सब
काँटे अभी वही हैं।
जो कुछ को चुन सकूँ मैं, दो फूल तब चढ़ाना।
कुछ रात में अभी तक
कुछ का हुआ सवेरा
आँगन में रौशनी है
कोने में है अँधेरा
इस तम को हर सकूँ यदि, दीपक तभी जलाना ।
है देख कर दुःखित मन
पौधे ये सूखे सूखे
कितने सड़क किनारे
हैं नवनिहाल भूखे
कुछ की क्षुधा मिटाऊँ तब भोज तुम कराना
जिसके लिए ये जीवन
संघर्ष ही रहा है
आघात अभावों के
जो मुस्कुरा सहा है
उसकी जो जीत लिख दूँ तब हार तुम चढ़ाना।

Saturday 17 December 2016

सँभाला होगा


किस तरह तुमने भला दिल को सँभाला होगा।
जब मुझे अपने खयालों से निकाला होगा।
दूर वो मुझसे रहे खुश हो ये मुमकिन ही नहीं,
दर्द को मान लो मुस्कान में ढाला होगा।
हुक़्म है एक सितारे को फ़ना होने का,
अब तो सूरज का तेरे घर में उजाला होगा।
मैं इसी ख़्याल में डूबा हूँ हुआ क्या है जो,
बीच बाज़ार मुहब्बत को उछाला होगा
रौंद इस दिल को अगर तुमने बढ़ाये हैं कदम
रास्ता फिर वो यकीनन कोई आला होगा।
  प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
    फतेहपुर उ.प्र.