इस उम्र के असर से, कुछ रंग खो गये हैं
कुछ चित्र ज़िन्दगी के, बेरंग हो गये हैं
स्मृति के चित्रपट पर
जो चित्र थे उकेरे
बरसात ये समय की
बैठी हुई है घेरे
कुछ अंश बच गये हैं, कुछ अंश धो गये हैं
कुछ रंग प्यार के थे
कुछ रंग दुश्मनी के
कुछ रंग मेल के तो,
कुछ थे तनातनी के
इकरंग हो गये सब, मन को भिगो गये हैं
इक रंग बचपना था
इक रंग थी जवानी
चेहरे की झुर्रियों में
लिख दी है सब कहानी
पन्ने पलट के पढ़ना, हम क्या सँजो गये हैं
:प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
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