Monday 20 March 2017

कुछ रंग खो गये हैं

इस उम्र के असर से, कुछ रंग खो गये हैं
कुछ चित्र ज़िन्दगी के, बेरंग हो गये हैं

स्मृति के चित्रपट पर
जो चित्र थे उकेरे
बरसात ये समय की
बैठी हुई है घेरे

कुछ अंश बच गये हैं, कुछ अंश धो गये हैं

कुछ रंग प्यार के थे
कुछ रंग दुश्मनी के
कुछ रंग मेल के तो,
कुछ थे तनातनी के

इकरंग हो गये सब, मन को भिगो गये हैं

इक रंग बचपना था
इक रंग थी जवानी
चेहरे की झुर्रियों में
लिख दी है सब कहानी

पन्ने पलट के पढ़ना, हम क्या सँजो गये हैं
         :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
           फतेहपुर उ.प्र.
         08896865866

Wednesday 8 March 2017

मंज़ूर करती है

1222 1222 1222 1222
सियासत की गली बेनूर को पुरनूर करती है
यहाँ तो बदज़ुबानी भी बहुत मशहूर करती है
उखाड़ो फेंक दो काँटा किसी के दर्द का वायस
रवायत जो कि औरत जात को रंजूर करती है
पता है मछलियों को एक दिन काँटा फँसा लेगा
मगर ये भूख फँसने के लिए मज़बूर करती है
कहीं ये क़ामयाबी दूर अपनों से न ले जाये
यही यक बात मेरे हौसले को चूर करती है
तुम्ही मुंसिफ़ अगर तन्हाइयां लिख दीं मिरे हक़ में
तुम्हारा फ़ैसला ये ज़िन्दगी मंज़ूर करती है
       :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

Saturday 4 March 2017


समझो रस्ता पकड़ लिया बर्बादी का
ग़र शायर को नशा चढ़ा उस्तादी का

Thursday 2 March 2017

ग़म क्या करना


ख़ार हो फूल हो हालात पे ग़म क्या करना
मैं तो कहता हूँ किसी बात पे ग़म क्या करना
ख़ाक को आग बना दे वो अगर चाहे तो
ख़ाक हो आग हो औकात पे ग़म क्या करना
कीमती है ये बहुत और मुलाकातों से
आख़िरी बार मुलाकात पे ग़म क्या करना
ढूढता था न मिला आज ख़ुद मिलेगा वो
मौत की रात हसीं रात, पे ग़म क्या करना
जीत पर नाम लिखा ग़र है किसी अपने का
जीत से लाख गुना, मात पे ग़म क्या करना
                          :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
                             फतेहपुर उ.प्र.
                              8896865866