माटी की गोदी
बैलों का श्रम बोये
मोती ही मोती
बैलों की जोड़ी
अथक परिश्रम
बरसे अन्न
ऐसी प्रगति
बैल बेरोज़गार
वक़्त की मार
ग़ुम हो गई
ट्रैक्टर के शोर में
बैलों की घंटी
माटी की गोदी
बैलों का श्रम बोये
मोती ही मोती
बैलों की जोड़ी
अथक परिश्रम
बरसे अन्न
ऐसी प्रगति
बैल बेरोज़गार
वक़्त की मार
ग़ुम हो गई
ट्रैक्टर के शोर में
बैलों की घंटी
'क' से किसान
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मैं 'क' से किसान हूँ
'ख' से खेती करता हूँ
'ग' से गाँव में रहता हूँ
और......
अब आप सोचेंगे 'घ' से क्या..?
तो सुनिये
'घ' से घोषणाएँ सुनता हूँ सरकारी
'क' से किसान
जो कहने को तो
आता है सबसे पहले
लेकिन वास्तविकता....
मैं हूँ 'ङ' जिसके माने होता है
कुछ नहीं....कुछ भी नहीं
नयी तकनीक ने छीन
लिया है मुझ 'क' से
जो था मेरे पास
डंडा भी और पूँछ भी
लेकिन 'ङ' बनकर
पंक्ति के सबसे अंत में
बैठे हुये
एक चीज़......शून्य
पहले भी था
और अब भी है मेरे पास
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
08896865866