जीवन है ये जीवन में बदलाव ज़रूरी है
कभी ज़रूरी धूप तो कभी छाँव ज़रूरी है
मंज़िल मिल जायेगी बस है चलने की देरी
स्वागतोत्सुक नवप्रभात निशि ढलने की देरी
दृढ़ निश्चय कब बाधाएँ टिक पाती हैं
अर्जुन के तरकश से तीर निकलने की देरी
जीवन है ये जीवन में बदलाव ज़रूरी है
कभी ज़रूरी धूप तो कभी छाँव ज़रूरी है
मंज़िल मिल जायेगी बस है चलने की देरी
स्वागतोत्सुक नवप्रभात निशि ढलने की देरी
दृढ़ निश्चय कब बाधाएँ टिक पाती हैं
अर्जुन के तरकश से तीर निकलने की देरी
हम सफर में चले हैं तुम्हें छोड़कर, अपनी आखों में आँसू न लाना कभी
दर्द बेइंतेहा होगा बेशक तुम्हें तुम मगर ये किसी से जताना नहीं
मौत से मन हमारा भरा ही है कब
सच्चा हिन्दोस्तानी डरा ही है कब
हम वतन के सिपाही वतन पर फ़ना
जो वतन पर मरा वो मरा ही है कब
आग आख़िर चिता की तो बुझ जाएगी, आग सीने से अपने बुझाना नहीं
थी कसम हमको इस राह जाना ही है
मादरे हिन्द पे जाँ लुटाना ही है
एक वादा करो तुम भी ऐ साथियों
अम्न के दुश्मनों को मिटाना ही है
भूल जाना भले साँस लेना मगर, तुम ये वादा कभी भी भुलाना नहीं
2122 2122 2122 212
सब्र को मेरे फिज़ा फिर आज़माने लग गयी
रातरानी की महक खिड़की से आने लग गयी
है इरादा क्या हवा तू चाहती है क्या बता
रात गहराई है तू शम्मा बुझाने लग गयी
जो समझ पाती नहीं थी प्रोज क्या पोएम है क्या
वो भी पगली प्रेम में कविता बनाने लग गयी
पूछना था जो कभी वो पूछ ही पाया नहीं
जब मिली जाने मुझे क्या-क्या बताने लग गयी
प्यार में इक़रार तो उसने किया ही था नहीं
मुझपे जाने कब वो अपना हक़ जताने लग गयी
2122 1221 2212 2122 12
ज़िंदगी के हर एक मोड़ पे बस तुम्हारी निशानी मिली
जितने पन्ने पलटते गये सब में एक ही कहानी मिली
उम्र ढल भी गयी तो भी क्या तुम चले भी गये तो भी क्या
गाँव लौटे तो हमको वही अपनी ज़िंदा जवानी मिली
फिर कई साल के बाद हम अबके होली में रंगीन हैं
घर की संदूकची में दबी एक चिट्ठी पुरानी मिली
होंगी मौसम की मज़बूरियां उसने हमको न मिलने दिया
पर मेरे सामने जब पड़ी बर्फ भी पानी पानी मिली
लोकतंत्र के अग्रपूज्य की भारत भाग्य विधाता की
निर्वाचन का महायज्ञ है, जय बोलो मतदाता की
जय जनता में निहित शक्ति की
जय पुनीत इस राष्ट्रभक्ति की
लोकतंत्र में पुण्य आस्था
संविधान के हेतु भक्ति की
जननायक की जय से पहले जननायक निर्माता की
मूर्तिकार है जो सर्जक है
वही चेतना का मूलक है
केंद्र वही है इस रचना का
वही शक्ति का उत्सर्जक है
शक्ति पूजने से पहले जय बोलो शक्ति प्रदाता की
सर्वप्रथम अभिनंदन किसका
रोली टीका चन्दन किसका
कहलाता गणतंत्र मूल, जो
राष्ट्र हृदय स्पंदन, उसका
लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी संविधान अवधाता की
कभी श्यामल घटाओं से घिरी फिर रात ना होगी
समंदर झील नदियों ताल की फिर बात ना होगी
अगर पेड़ों को काटोगे बिना सोचे बिना समझे
तो यारों इस धरा पर फिर कभी बरसात ना होगी
झूम कर मेघ कोई छत पे जब बरसता है
मुझको लगता है मेरे हाल पे वो हँसता है
साथ भीगे थे कभी जैसे बारिशों में हम
भीग जाने को फिर से मन मेरा तरसता है
नाम धरती के अपनी सारी ज़वानी लिख दी
मिटा के ख़ुद को मोहब्बत की निशानी लिख दी
जो मेरी आँख की कोरों में आ के ठहरी थी
बादलों ने बरस के वो ही कहानी लिख दी