2122 2122 2122 212
सब्र को मेरे फिज़ा फिर आज़माने लग गयी
रातरानी की महक खिड़की से आने लग गयी
है इरादा क्या हवा तू चाहती है क्या बता
रात गहराई है तू शम्मा बुझाने लग गयी
जो समझ पाती नहीं थी प्रोज क्या पोएम है क्या
वो भी पगली प्रेम में कविता बनाने लग गयी
पूछना था जो कभी वो पूछ ही पाया नहीं
जब मिली जाने मुझे क्या-क्या बताने लग गयी
प्यार में इक़रार तो उसने किया ही था नहीं
मुझपे जाने कब वो अपना हक़ जताने लग गयी
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