Friday 28 February 2020

आने लग गयी

2122 2122 2122 212
सब्र को  मेरे फिज़ा  फिर   आज़माने  लग   गयी
रातरानी की महक खिड़की  से आने  लग   गयी

है  इरादा  क्या  हवा  तू  चाहती  है   क्या    बता
रात  गहराई   है  तू   शम्मा   बुझाने  लग    गयी

जो समझ पाती नहीं थी प्रोज क्या पोएम है क्या
वो भी पगली  प्रेम  में  कविता  बनाने  लग  गयी

पूछना  था   जो  कभी   वो  पूछ  ही  पाया  नहीं
जब मिली जाने मुझे क्या-क्या  बताने  लग  गयी

प्यार में  इक़रार   तो  उसने  किया  ही  था  नहीं
मुझपे जाने कब वो अपना हक़ जताने  लग गयी

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