बिनु मसि बिनु कागद
प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून' का साहित्य को समर्पित ब्लॉग
Saturday 18 December 2021
Friday 12 November 2021
Tuesday 23 March 2021
Sunday 29 March 2020
Friday 28 February 2020
जीवन है
जीवन है ये जीवन में बदलाव ज़रूरी है
कभी ज़रूरी धूप तो कभी छाँव ज़रूरी है
मंज़िल मिल जायेगी बस है चलने की देरी
स्वागतोत्सुक नवप्रभात निशि ढलने की देरी
दृढ़ निश्चय कब बाधाएँ टिक पाती हैं
अर्जुन के तरकश से तीर निकलने की देरी
जताना नहीं
हम सफर में चले हैं तुम्हें छोड़कर, अपनी आखों में आँसू न लाना कभी
दर्द बेइंतेहा होगा बेशक तुम्हें तुम मगर ये किसी से जताना नहीं
मौत से मन हमारा भरा ही है कब
सच्चा हिन्दोस्तानी डरा ही है कब
हम वतन के सिपाही वतन पर फ़ना
जो वतन पर मरा वो मरा ही है कब
आग आख़िर चिता की तो बुझ जाएगी, आग सीने से अपने बुझाना नहीं
थी कसम हमको इस राह जाना ही है
मादरे हिन्द पे जाँ लुटाना ही है
एक वादा करो तुम भी ऐ साथियों
अम्न के दुश्मनों को मिटाना ही है
भूल जाना भले साँस लेना मगर, तुम ये वादा कभी भी भुलाना नहीं
आने लग गयी
2122 2122 2122 212
सब्र को मेरे फिज़ा फिर आज़माने लग गयी
रातरानी की महक खिड़की से आने लग गयी
है इरादा क्या हवा तू चाहती है क्या बता
रात गहराई है तू शम्मा बुझाने लग गयी
जो समझ पाती नहीं थी प्रोज क्या पोएम है क्या
वो भी पगली प्रेम में कविता बनाने लग गयी
पूछना था जो कभी वो पूछ ही पाया नहीं
जब मिली जाने मुझे क्या-क्या बताने लग गयी
प्यार में इक़रार तो उसने किया ही था नहीं
मुझपे जाने कब वो अपना हक़ जताने लग गयी