Sunday 19 November 2017

मुक्तक

इधर से हाथ जोड़े जा रहे  हैं
उधर से सांप छोड़े जा रहे  हैं
चुनावी दौर दारू मुफ़्त की है
शहर में काँच तोड़े जा रहे  हैं
                            -प्रवीण 'प्रसून'