Sunday 18 September 2016

धोखा हुआ

ठग गया विश्वास फिर से क्या कहूँ मैं क्या हुआ।
फिर मुझे लगता है मेरे साथ इक धोखा हुआ।

बेच मत देना शहीदी खून को इस बार फिर,
चुप न बैठेंगे अगर इस बार ये सौदा हुआ।

एक बेटे के लिए इससे बुरा दिन और क्या!
उसकी माँ पर ग़र उसी के सामने हमला हुआ
 
शेर है तो शेर जैसा वार भी तो चाहिए।
किस सियासी चाह में सीना बता छोटा हुआ।

बीन सुननी है नहीं मुझको सपेरे जान ले,
विष भरा फन चाहिए इस बार तो कुचला हुआ।

ला सके सत्रह के बदले ग़र न सत्रह लाख सर,
बेरहम दुश्मन से फिर बदला भी क्या बदला हुआ।

कह रही दुनिया जिसे ये देश है सबसे जवां,
अब कहीं कहने न लग जाये कि ये मुर्दा हुआ।
        :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
          फतेहपुर उत्तर प्रदेश
           08896865866

Thursday 15 September 2016


आरज़ू ए इश्क़ में देखो सिकन्दर हो गया

Wednesday 14 September 2016

मुक्तक

चोट से काँच का सामान  बिखर जाता है
वक़्त मुँह मोड़ ले अरमान बिख़र जाता है
और तूफ़ान में गिरकर के सँभल भी जाये
इश्क़ में  हार के  इन्सान  बिखर जाता है
                               : प्रवीण 'प्रसून'

Sunday 11 September 2016

गाँव आदर्श

रोज़गार, बिजली,सड़क, पग-पग पर संघर्ष।
दर्ज़ कागजों में मिला गाँव वही आदर्श।
             :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
             08896865866

गाँव आदर्श

रोज़गार, बिजली,सड़क, पग-पग पर संघर्ष।
दर्ज़ कागजों में मिला गाँव वही आदर्श।
             :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
             08896865866

सूरज क़िस्मत का अब बुझने वाला लगता है

सूरज क़िस्मत का अब बुझने वाला लगता है।
उससे लम्बा मुझको उसका साया लगता है।
राहु रिजर्वेशन का उसको ढक कर बैठ गया
पूरा चंदा भी दुनिया को आधा लगता है
वोटों की खेती में पैसा पैदा होता है,
फसलों की खेती घाटे का धंधा लगता है।
हंस समझकर तुमने जिसको कुर्सी दे डाली,
वेश बदलकर बैठा मुझको कौआ लगता है।
अब किस राह 'प्रसून' बताओ हो पैसे वाला
पैसा पाने को भी कितना पैसा लगता है!
                      : प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
                         फतेहपुर उ.प्र.
                           08896865866

Thursday 8 September 2016

दीवाने कि याद

ये हवा क्यों साथ लायी एक दीवाने कि याद
दो उँगलियों से उलझती ज़ुल्फ़ सुलझाने की याद

आँख के नीचे ये कालापन नहीं कुछ और है,
रेत के दिल में दबी सैलाब के आने कि याद

एक बादल दे गया जो अश्क़ वाली बारिशें दर्द बन अब तक हरी है एक बेगाने कि याद

ऐ ख़ुदा बदकिस्मती का दौर दे कर है कहाँ
कब करेगा खुशनुमा हालात दोहराने कि याद

बाग़ में कलियाँ खिलीं हैं और खिल कर गुल हुईं
आ गयी माशूक़ की खुलकर के हँस जाने कि याद
          :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
            फतेहपुर उ.प्र.
            08896865866

सर जी

सबको सरजी मत कहो सरजी शब्द विशेष।
सर जी बस वो खास हैं धरे आम जो भेष।
            :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
              फतेहपुर उ.प्र.

Wednesday 7 September 2016

आम आदमी खाट ले गया

साठ साल का ठाट ले गया
राज ले गया पाट ले गया
सोयेगा ना सोने देगा
आम आदमी खाट ले गया

पहले सर से ताज उतारा
फिर ज़मीन से पैर उखाड़े
शायद अब तय हुआ यही है
नहीं चलेंगे अब रजवाड़े

थोड़ी सी जो नाक बची थी
इसी बहाने काट ले गया

सोयेगा ना सोने देगा
आम आदमी खाट ले गया

गुड़ गन्ना का पता नहीं है
बातें हैं कलकत्ता की
सीधे सीधे क्यों ना कहते
राह चाहिए सत्ता की

इज़्ज़त का कर दिया कचूमर
करके बारहबाट ले गया

सोयेगा ना सोने देगा
आम आदमी खाट ले गया

अंदर सोने की थाली है
तरह तरह का मेवा है
छप्पन भोग सजे हैं भीतर
बाहर करे कलेवा है

राजमहल की पोल खुल गयी
रघुवा तोड़ कपाट ले गया

सोयेगा ना सोने देगा
आम आदमी खाट ले गया

क्यों अभाव की सुने कहानी
पात्र स्वयं जो किस्से का
साठ साल में मिला नहीं क्यों
जो था उसके हिस्से का

अब झुनझुना तुम्हारे हिस्से
अपने हक़ की हाट ले गया

सोयेगा ना सोने देगा
आम आदमी खाट ले गया

समझ सको तो इसको समझो
लूट नहीं संकेत हुआ है
साठ साल की राजनीति में
यही देश के साथ हुआ है

घोटालों की जड़ कांधे पे
रख के मुर्दाघाट ले गया

सोयेगा ना सोने देगा
आम आदमी खाट ले गया
          :©प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'