Saturday 23 July 2016

दोहे

उनके ऊपर चल गई, उनकी ही बंदूक।
राजनीति का दाँव जब, गये ज़रा सा चूक।।

दोहे

राजनीति के खेल में, नारी का अपमान।
अपशब्दों ने फिर यहाँ, मार लिया मैदान।।

तू मुझको दो चार कह, मैं तुझको दो चार।
रहे मीडिया में बने, फ्री में हुआ प्रचार।।

पॉलिटिक्स में फेम ले , गाली देना सीख।
मुख्य ख़बर बन जायगी, गला फाड़कर चीख।

मँहगी बिकती गालियां, सस्ता शिष्टाचार।
राजनीति का हो रहा, ऐसा कुछ व्यापार।।

पिछली बातें भूलकर, फिर दे देती वोट।
जनता भोली इस तरह, फिर फिर खाती चोट।।

पहले थे ड्रग माफ़िया, फिर गुंडों के बाप।
"माननीय" हो ही गए, धीरे-धीरे आप।।
       :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

Sunday 17 July 2016

हाइकु

पानी की नाव
दे गई पानी को ही
अदृश्य घाव

Friday 15 July 2016

खारे लिए

आ गए तुम ज़मी पर हमारे लिए।
आसमां रह गया चाँद तारे लिए।

तैर मझधार में मंज़िलें ढूंढ ले ,
मिल सकेगा नहीं कुछ किनारे लिए।

हम उसे भूल जाते ये तय था मगर,
मिल गया इश्क़िया फिर इशारे लिया।

तुम गए तो न दिल से ये पतझड़ गया,
राह कितनी मिलीं तो बहारे लिए।

मोतियाँ ले गया है कोई लूट के,
सीप फिर रह गई अश्क़ खारे लिए।
         प्रवीण 'प्रसून'

Friday 1 July 2016

क्षणिका

परिवर्तन
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भाईगिरी छोड़कर
चुनाव में खड़ा है
नाली का कीड़ा
नाला में पड़ा है

अनकहा
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जो न कह पाया
मरते-मरते
लोगों को लगा
वही तो सबसे ज़रूरी था

हर्बल
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दातून दबाये
सुन रहा था हरिया
हर्बल उत्पाद पर प्रवचन
गोरी मेम से

क्षणिका

व्यापार
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वैसे तो
ईमानदार था
लोग कहने लगे
भू-माफिया
वो तो उसका
व्यापार था

जागरुकता
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पहले वो
सीधे खा जाता था
पान मसाला
अब....खाने से पहले
पढता है
वैधानिक चेतावनी

नियम
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पूछ लिया
सरकारी बाबू से
आबू नगर का रास्ता
उसने कहा
लिखकर दो

छूट
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ओवरलोड माफ़
जितने चौराहे
उतने
बीस के नोट साफ़

सीख
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नौकरी के पहले दिन
उससे कहा था
चींटी से सीखना
सतत कर्म के बजाय
सीख लिया उसने
शक्कर ढूँढना