Monday 23 January 2012

मुँह चिढाता चाँद

घड़ी की टिक्क
मुझे याद दिलाती है 
जिम्मेदारियों का बोझ धोने की 
और/ हर कदम पर ठोकर
याद दिला जाती है 
हथेलियों में भाग्य रेखा नहीं होने की/बेशक
दृढ़ निश्चय और कर्म से/भाग्य
एक न एक दिन निखर जायेगा
लेकिन मेरा परिवार-मेरा सपना 
निश्चित ही
तब तक बिखर जायेगा
उस दिन व्यर्थ हो जाएँगी
सारी डिग्रियाँ
और निराश हो जाएँगी
मेरी और तकती निगाहें
टुकड़े-टुकड़े जोड़ा गया
उम्मीदों का महल  ढल जायेगा
बस बेरोज़गारी का प्रमाणपत्र 
हाथ रह जायेगा
मन क्रांत है/बेहद अशांत है
उगता सूरज तो अब भी हर रोज़
आशा की एक किरण ले आता है
लेकिन रात
फिर वही ढाक के तीन पात
ये मुँह  चिढाता चाँद
खिल्ली उड़ाते तारे अच्छे नहीं लगते

Thursday 12 January 2012

चलन के सिक्के और नोट

चलन का एक छोटा सिक्का
दो फैली हुई आँखें
और उसी के इर्द सिमटी हुई
आशाएं और उम्मीदें
खर्च...
रोटी से शुरू और रोटी पर ख़त्म
और फिर शुरू होता है
सपना उसी सिक्के का
****
चलन के कुछ मंझोले नोट
दो सिकुड़ी हुई आँखें
बिजली पानी का बिल
बिट्टू की फीस
रोज़मर्रा का खर्च
और...
बीवी का दिल
इन हकीकतों के बीच
सपनों की जगह कहाँ?
****
चलन के अनगिनत सबसे बड़े नोट
दो बंद आँखें
क्लब-डांसर ,बीयर-बार
रेसकोर्स-कैसीनो
धुंआ-धक्कड़,शेयर-सट्टा
सपनों से परे हकीकत 

Thursday 5 January 2012

चुनावी चोखा


        1
शुरू चुनावी भागम-भाग
जंगल में फिर लगी है आग
बहुत दिनों तक मजे काट कर
बिल से फिर निकले हैं नाग 
        2
पहले पूरी खा जाने को 
इक दूजे की काट करेंगे 
नहीं बनेगा काम अगर तो 
आपस में जोड़-गाँठ करेंगे 
चित भी अपनी पट भी अपनी 
मिलजुल बन्दर बाँट करेंगे 
        3
चार दिनों की दौड़ भाग कर 
ताज पहन कर वो जायेंगे
पांच साल फिर हँसते हँसते
हमको टोपी पहनाएंगे
        4
लगा चुनावी मेला है,
बिजली पानी सड़कों के,
वादों का फिर रेला है.
कई तमासे वाले हैं,
सबकी बंशी इधर बजी.
भ्रष्टाचार मिटने वाली,
एक नयी दूकान सजी. 
बम्पर सेल हुई सपनों की,
सबकी दूकानें खाली.
जिसके पास नहीं था कुछ भी,
उसने शर्म बेंच डाली.
हमको कुछ भी रास न आया,
मेला लगे झमेला है.