Thursday 31 December 2015

नये साल के लिए

उम्मीद मिली एक और साल के लिये।
मासूम लम्हें थाम देखभाल के लिये।

जो बीत गया वक़्त सीख दे गया मुझे,
तैयार फिर बिसात एक चाल के लिये।

कुछ ढूँढिये खुशी उदास हो न बैठिए।
नववर्ष में नहीं जगह मलाल के लिये।

गुज़रा हुआ सफ़र सवाल पूछता रहा,
तैयार रहो और कुछ सवाल के लिये।

कुछ लोग हमें छोड़ इधर राह पर गए,
कुछ हाथ नए मिल गए मशाल के लिये।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर, उत्तर प्रदेश
08896865866

Wednesday 30 December 2015

चंदा उतारा है

फलक खामोश है जो ख़्वाब सा टूटा सितारा है।
ज़मीं खुश है मुरादें माँगने का ये इशारा है।

यहाँ बारिश किसी का घर बहाकर ले गई देखो,
वहाँ वो कह रहे देखो बड़ा उम्दा नज़ारा है।

नदी में इश्क़ की गोते लगाकर भी नहीं समझे,
कभी मझधार लगता है कभी लगता किनारा है।

हमें मज़दूर कहते है यही किस्मत हमारी है,
तुम्हें बंगला मुबारक हो हमारा ईंट-गारा है।

कभी मैं माँगता था रौशनी बेटी मुझे दे दी,
ख़ुदा ने आज मेरे वास्ते चंदा उतारा है।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

Tuesday 29 December 2015

फेसबुक चलाने दो

बेटियों को मुझे पढ़ाने दो।
और दीपक मुझे जलाने दो।

बाग में कम न हो कहीं खुश्बू,
फूल कुछ और भी खिलाने दो।

दिल हमारा जवाब दे बैठा,
दर्द को और अब ठिकाने दो।

दोस्त अब घर मिरे न आएँगे,
फोन दो फेसबुक चलाने दो।

राह तकते ख़तम हुईं साँसे,
और कुछ देर आज़माने दो।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
08896865866

Saturday 26 December 2015

ग़ज़ल जान गया हूँ

हर इक के रू-ब-रू बिना ईमान गया हूँ।
ऐ वक्त तेरी नब्ज़ को पहचान गया हूँ,

है आख़िरी नहीं ये मुलाक़ात रख सनद,
तेरे लबों पे छोड़ के मुस्कान गया हूँ।

हर शाम दिल अज़ीज़ बेटियों के सामने,
ले करके मुट्ठियों में आसमान गया हूँ।

होने लगी जो गुफ़्तगू नज़रों के दरमियां,
लगने लगा मुझे कि ग़ज़ल जान गया हूँ।

जब भी ग़ुरूर का नशा सर पे चढ़ा मिरे,
महफ़िल वहीं पे छोड़ के शमशान गया हूँ।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
08896865866

ऑड इवन

संसद को भी मिल सके ध्वनी प्रदूषण मुक्ति।
ऑड इवन की तर्ज़ पर लघु गुरु वाली युक्ति।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून

Sunday 13 December 2015

जवानी आएगी

लौट कर फिर से जवानी आएगी।
ख़्वाब में जब रातरानी आएगी।

फूल मुस्कानें लगेंगे बाग में,
आप से पहले निशानी आएगी।

ख़त्म झगडे हो न पाएँगे कभी,
बात जो तुमको बढ़ानी आएगी।

क्यों भला औलाद को हूँ टोकता,
कब मुझे इज़्ज़त बचानी आएगी।

मैं सिखाता था सलीके शान से,
क्या पता था बदजुबानी आएगी।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

Saturday 12 December 2015

जमीं पर आ गिरेगा

कभी दो चार दिन रोटी बिना तू भी गुजर कर।
जमीं पर आ गिरेगा आसमानों से उतर कर।
हमारे मुल्क का मॉडल वहाँ तुझको मिलेगा,
कभी तू ट्रेन में जनरल टिकट लेकर सफर कर।
तुझे मैंने दिया जो दिल मोहब्बत से भरा था,
कहाँ ग़ुम हो गया है ले उसे कुछ तो ख़बर कर।
लगा सीने उसे बच्चा बहुत नादान वो भी,
खड़ा है डाँट खाकर जो 'बेचारा दूर डर कर।
नज़र से ही न हर यक की उतर जाये किसी दिन,
इधर की बात सुनकर बेवज़ह तू मत उधर कर।
   -कॉपीराइट@
प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून

जमीं पर आ गिरेगा

कभी दो चार दिन रोटी बिना तू भी गुजर कर।
जमीं पर आ गिरेगा आसमानों से उतर कर।
हमारे मुल्क का मॉडल वहाँ तुझको मिलेगा,
कभी तू ट्रेन में जनरल टिकट लेकर सफर कर।
तुझे मैंने दिया जो दिल मोहब्बत से भरा था,
कहाँ ग़ुम हो गया है ले उसे कुछ तो ख़बर कर।
लगा सीने उसे बच्चा बहुत नादान वो भी,
खड़ा है डाँट खाकर जो 'बेचारा दूर डर कर।
नज़र से ही न हर यक की उतर जाये किसी दिन,
इधर की बात सुनकर बेवज़ह तू मत उधर कर।
   -कॉपीराइट@
प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून

Friday 4 December 2015

चुनाव

है चुनाव का मौसम आया, चढ़ा सियासी पारा है।
दारू बाजों का जमावड़ा, चमचों की पौ बारा है।

रात-रात भर चले कहानी, दिनभर एक पहाड़ा है।
गाँव हमारा गाँव नहीं अब, लगता एक अखाड़ा है।

गणित लगाते ठाकुर बाबा, घेरे हर प्रत्याशी है।
कुछ के चेहरे खिले हुए हैं, कुछ को हुई उदासी है।

वोटर कितने कौन जाति में, रट्टा मारे बैठे हैं।
जिनकी संख्या ज़्यादा निकली, अगुवा उनके ऐंठे हैं।

हैण्डपम्प चकरोड खड़ंजा, पेंशन, कार्ड बनाओगे।
जनता सबसे पूछ रही है, क्या क्या हमें दिलाओगे।

कुछ ने पत्ते खोल दिए हैं, कुछ मुँह सिले हुए देखो।
कुछ हैं एक तरफ़ खुलकरके, कुछ हैं घुले मिले देखो।

कुछ कानाफूसी में माहिर, सेंधमार कुछ जागे हैं।
कुछ मक्खन पालिश वाले तो, कुछ जुगाड़ में आगे हैं।

हाथ जोड़कर खड़े चौधरी, पीछे रैफल वाले हैं।
कैसे इनको मना करोगे, गुंडे जी के साले हैं।

राजनीति की गणित कठिन है, छोटी समझ हमारी है।
यह भी खींचे वह भी खींचे, मुश्किल राह दुधारी है।

प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'