इधर महल में बंद हो गये
सोच लिया सब ठीकठाक है
उधर शकुनि षडयंत्र कर गया
कूटनीति या कुटिल नीति है
भद्रजनों पर जो भारी है
सूक्ष्म युद्ध से महानाश हो
इसकी पूरी तै यारी है
राजलोभ में धर्म मर गया
सबको एक खिलौना समझा
तुम भी एक खिलौने ही हो
बड़ा समझने लगे स्वयं को
मनुज अभी तुम बौने ही हो
क्यों इतना अभिमान भर गया!
क्या होगा भावी ना जाने
आशंका पर आशंका है
चाल कौरवों ने तो चल दी
देखें हाथ विदुर के क्या है?
सोच-सोच मन और डर गया
प्रवीण प्रसून