Wednesday 26 October 2016

सामना

2122 2122 2122 212
साथ चल पाये नहीं तो हम किनारे हो गये।
और वो लेकर रवानी बीच धारे हो गये।
अब अकेले राह चलने का भरोसा आ गया,
ख़ैर ये अच्छा रहा वो बेसहारे हो गये।
टूटकर बिखरे नहीं जमकर अँधेरों से लड़े,
लोग वो ख़ुद की चमक से ही सितारे हो गये।
इश्क़ की दौलत यही है लो इसे अब बाँट लो,
कुछ तुम्हारे हो गये, कुछ ग़म हमारे हो गये।
इस ज़माने की हक़ीक़त से हुआ जब सामना,
ख़्वाब आँखों की हदों में कैद सारे हो गये।
   :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून

Tuesday 4 October 2016

देखो ये गद्दार देश का ओम पुरी क्या बोल गया!
पोल देशभक्तों के सम्मुख ख़ुद अपनी ये खोल गया।
अगर न इसको मिली सजा जिसका पापी अधिकारी है,
तो बलिदान वीर सिंहों का कहो भला किस मोल गया।
    :प्रवीण 'प्रसून'
    08896865866