ऐसा भी क्या डर भला जो ले जीवन छीन।
जिओ सदा ही मस्त हो रहो भले दिन तीन।
Saturday 30 January 2016
Thursday 21 January 2016
फेसबुकिया क्रांति
मैं कई दिनों से प्लानिंग कर रहा हूँ
कि बन जाऊँ एक क्रांतिकारी
ला दूँ हलचल विश्वभर में
बनाऊँ एक इवेंट फेसबुक पर
इन्वाइट करूँ कई हजार को
फिर शुरू करूँ बाँटना
अपना दिमाग़ी फितूर फ्री में
महान चिंतन की तरह
लाइक कम हो जाएँ तो
शुरू करूँ गलियाना, कोसना
किसी ऐसे को जिसे विश्व मानता हो महान
लोग फिर देंगे मुझ पर पूरा ध्यान
और अगर काम न चला तो.....
फिर करूँगा वो जिससे
सच में आ जायेगी हलचल
हो जायेगी सफल
....फेसबुकिया क्रांति
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
Wednesday 20 January 2016
बेसहारा बहुत है
मुझे आपका दीद प्यारा बहुत है।
सनम यक झलक यक नज़ारा बहुत है।
वहाँ चाँद भी जल गया है जलन से,
सनम को ख़ुदा ने सँवारा बहुत है।
नहीं शेर केवल ज़ुबाँ से कहा है,
उसे ज़िन्दगी में उतारा बहुत है।
बहा कर नदी एक बनकर भले तू,
मुझे उस नदी का किनारा बहुत है।
उसे एक अहसास का दो सहारा,
सुनो दिल 'मेरा बेसहारा बहुत है।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
8896865866
असर कर रहा है
इत्र से ज़िस्म हो तर रहा है।
इश्क़ ऐसा असर कर रहा है।
प्यार करके उसे क्या पता है,
वो बना एक शायर रहा है।
तुम बताओ तरक्की यही है?
फेफड़ों में धुआँ भर रहा है।
मौत का एक दिन जब लिखा है,
फिर बता रोज़ क्यों मर रहा है?
दुश्मनों से निभा ले गया वो,
दोस्तों से ज़रा डर रहा है।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
Saturday 9 January 2016
दायरा दीजिये
अक़्स मेरा वहाँ से मिटा दीजिये।
साफ पानी ज़रा सा हिला दीजिये।
ग़र ज़रा बात पर दुश्मनी हो गई,
प्यार कैसा मुझे ये बता दीजिये।
दूसरों की कमी देखना है सरल,
आइने को कभी आइना दीजिये।
आप रखिए जमीं मैं परिंदा खुला,
एक टुकड़ा सही आसमां दीजिये।
और रिश्ते भले दायरे में रहें,
दोस्ती को बड़ा दायरा दीजिये।
प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
8896865866
Friday 8 January 2016
यहाँ ये आम आदत है
पराये हो गए बेशक़ मग़र दिल में मुहब्बत है।
चले आओ खयालों में तुम्हें हर पल इज़ाज़त है।
हुआ है बाप चुप, बेटा ज़रा नज़रें मिला बैठा,
वहाँ डर की जगह पे दिख गई उसको बग़ावत है।
बड़ी इज्ज़त बड़ी शोहरत बड़ा है नाम अब मेरा,
मुझे जो भी मिला है सब मिला माँ की बदौलत है।
उधर ही बेइमानी है जिधर डालो नज़र अपनी,
बुराई दाल जैसी है नमक जैसी शराफ़त है।
चले आना यहाँ कल फिर अगर ये टाल दें तुमको,
मियां ये काम सरकारी यहाँ ये आम आदत है।
–प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
08896865866
Thursday 7 January 2016
ग़ज़ब हो गया
हमको छत पे बुलाना ग़ज़ब हो गया।
चाँद मुखड़ा दिखाना ग़ज़ब हो गया।
लोग समझे मिरा दिल ख़ुशी का महल,
दर्द का आशियाना ग़ज़ब हो गया।
आप हो ख़ूबसूरत पता था मुझे,
बात भी शायराना ग़ज़ब हो गया।
डाँट कर फिर पिता का मनाना मुझे,
पेट में गुदगुदाना ग़ज़ब हो गया।
हाथ जो थे कभी गाल को सेंकते,
पीठ का थपथपाना ग़ज़ब हो गया।
होठ पर रख मिरे इश्क़ को सो गए,
नींद में मुस्कुराना ग़ज़ब हो गया।
रात गुड़िया मेरी ज़िद दिखाने लगी,
तौलिये पे झुलाना ग़ज़ब हो गया।
–प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
8896865866
Friday 1 January 2016
बियर पिलाते दोस्त
पाँच दोहे
नया वर्ष कुछ यूँ मना बियर पिलाते दोस्त |
कमर हिलाती लड़कियाँ, मूवी, मुर्गा, गोश्त।
नए वर्ष में क्या नया , केवल इक तारीख़।
अभी यहाँ वो निर्भया, रही कहीं पर चीख।
नए वर्ष का दिन नया, जब खोला अख़बार।
अच्छे दिन के कुछ नहीं, दिखे मुझे आसार।
नए वर्ष में सब नया , कैसे होगा सोच।
सागर भरा अथाह है, लघु चिड़िया की चोंच।
नए वर्ष के ज़श्न में, हुआ मुझे यह ज्ञान।
आगे है यह युग युवा, हूँ मैं ही नादान।
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-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून' www.praveenkumarsrivastav.blogsot.com
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