Thursday 25 July 2013

एक कविता तुम्हारे नाम


तुम्हे पता नहीँ कि,मैँ तुम्हे कितना लाइक करता हूँ
मेरे लैपी के वालपेपर पर रहती हो तुम ही,
स्माइल करती हुयी।
मेरे फ्रेन्ड अक्सर ही शरारत में चुरा लेते हैँ 
पासवर्ड मेरी ईमेल आई डी का
क्यूँकि वो होता है
तुम्हारे ही नाम के अल्फाबेट्स पर हमेशा
कई बार तुम्हेँ ऑनलाइन पाकर मचल उठता हूँ कि
कह दूँ दिल की बात
पर...चैट बाक्स खोलकर रह जाता हूँ बस
लेकिन सच बताना
क्या तुम तब भी समझ नहीँ पाती हो
कि मैँ तुम्हे कितना ल.....सॉरी लाइक करता हूँ
जब मैँ फेसबुक पर तुम्हारे हर पोस्ट को लाइक करता हूँ
और फिर भी मन नहीँ भरता
तो कमेन्ट बाक्स मेँ भी लिख देता हूँ लाइक लाइक लाइक

(कॉपीराइट@रचनाकार प्रवीण कुमार श्रीवास्तव)