Sunday 26 June 2016

चीनी सामान नहीं हूँ

मोदी हूँ नादान नहीं हूँ।
दुश्मन से अंजान नहीं हूँ।

टूट नहीं सकता हूँ ज़ल्दी
मैं चीनी सामान नहीं हूँ।

छोटे प्यादे मात मुझे दें,
इतना मैं आसान नहीं हूँ।

तेरी नीयत जानी-मानी,
हरक़त से हैरान नहीं हूँ।

सबक नहीं ग़र सिखलाया तो,
शेर-ए-हिंदुस्तान नहीं हूँ।
    -प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
    फतेहपुर उ.प्र.
     08896865866

Saturday 18 June 2016

हाथ वाला पंखा

हाथ वाला पंखा
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प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
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तुम....
हमें वादों में उलझा कर
बेवकूफ़ बना कर
ख़ुश होते हो
और इतराते हो
अपने चहेतों के बीच
सीना फुलाते हो
अपनी
सियासी समझ पर
इस उमस भरी रात में
अपने दुधमुँहे को लेकर
रात दो बजे तक
बैठती हूँ छत पर
लाइट के इंतज़ार में
दिन भर की थकी
ऊँघती हुई
झलती हूँ
हाथ वाला पंखा
इसलिये कि चैन से
सोता रहे मेरा बच्चा
उधर ए सी में
ऐश करते हो तुम
और तुम्हारे बच्चे
मुझे याद है
चुनाव के समय
तुमने की थी
विकास की बातें
बराबरी की बातें
और समझाया था
कि बटन वही दबाना
जिसके सामने बना हो
"हाथ वाला पंखा"

Friday 10 June 2016

कश मैंने लगा लिए

2222 2222 2222 1212
ग़म के घर से निकला फिर मैं ग़म के जंगल चला गया।
दर्द मिटाने को मैख़ाने क्यों मैं पागल चला गया।

उसने बोला दारू सौगातें लायेगी चले चलो,
और कमल की लालच में फिर मैं उस दलदल चला गया।

गुज़रा वक़्त डुबाने बैठा मैं दारू में ज़रा ज़रा,
अंजाने ही नासमझी में खुशियों का कल चला गया।

खाली कर बोतल दारू की आँसू अपने भरे मगर,
आँसू के सागर में मेरी माँ का आँचल चला गया।

चैन मिले इक पल इस ख़ातिर दो कश मैंने लगा लिए,
और धुँए में तब से खोता मेरा हर पल चला गया।
  प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

शायरी कर लीजिये

बेवज़ह रो रो के सूरत क्यों बुरी कर लीजिये।
दर्द को भी ख़ूबसूरत शायरी कर लीजिये।

आपका भी नाम मंचों में चलेगा ख़ूब तब,
शायरी के नाम पर जो मसख़री कर लीजिये।

जब अँधेरा ही अँधेरा हर तरफ़ दिखने लगे,
आँख अपनी बंद करिये रौशनी कर लीजिए।

आपके दिल में उजाला ख़ुद ब ख़ुद हो जायेगा,
इन अँधेरी बस्तियों से दोस्ती कर लीजिए।

लोग हैं दुश्मन अभी जो दोस्त होंगे देखना,
बस कँटीली इस ज़ुबाँ को मखमली कर लीजिये।
    -प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
      फतेहपुर उ.प्र.

वनरोज: दोहे

नीलगाय को मारकर, रँगे खून से हाथ।
कैसा मानव धर्म यह, पशुता पशु के साथ।।

हैं मनुष्य भी तो बहुत, करते हैं नुकसान।
इन पर भी वनरोज सँग, दो बंदूकें तान।

मारो मत वनरोज को, कर लो यह संकल्प।
मानवता जीवित रहे, ऐसा रचो विकल्प।।

क्या निरीह वनरोज का, जीवन है बेमोल!
और तरीकों से करो, जनसंख्या कंट्रोल।।

तड़प तड़प कर मर गई, छौने हुए अनाथ।
मानवता मारी गई, नीलगाय के साथ।

Saturday 4 June 2016

पर्यावरण गीत

जिस धरती पर जन्म लिया है, उसका क़र्ज़ चुकायें।
चलो चलें हर एक मेड़ पर, इक इक पेड़ लगायें।

सूना सूना सा लगता क्यों,ये धरती का आँगन
आओ अपने श्रम से लायें,रिमझिम रिमझिम सावन
सूखी बंजर धरती पर हम,चादर हरी बिछायें।

गाँव गाँव हम बाग लगायें,शहर शहर फुलवारी
उपहारों में फूल न दें हम,दें फूलों की क्यारी
अगली पीढ़ी के हित में हम,अब ये रीति चलायें।

बोलो तब भौंरे क्या करते,फूल अगर ना खिलते,
उपवन अगर न होते,कान्हा राधा कैसे मिलते
पावन प्रेम पगे पुष्पों में,ये ही सेज सजायें।

अगर सचेत हुए तो खोया,भी हासिल हो सकता,
आँखें मूँद अगर बैठे तो,कल मुश्किल हो सकता
ठोकर लगने से पहले ही,अच्छा है जग जायें।
   प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

Wednesday 1 June 2016

'आभी' से

'आभी' पर हाइकु:

'आभी' सिखाती
भटके मानव को
    प्रकृति प्रेम

जीने की चाभी
प्रकृति संरक्षण
बताती 'आभी'

झील का पानी
'आभी' श्रम पावन
बाँटें जीवन

हो शुरुआत
तालाबों की तलाश
'आभी'-प्रयास

सीखें 'आभी' से
  प्रकृति संरक्षण
    जीवन मूल
  
  :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून

दोहा

बहुत कठिन कैसे कहूँ, कितना माँ का प्यार।
थोड़ी कोशिश कर रहा, जैसे जग विस्तार।।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

दोहा

जीवन बगिया में खिलें, सम्बन्धों के फूल।
बस अवसर पर झाड़ लो, अंतर्मन की धूल।