Saturday 19 March 2016
Friday 18 March 2016
रजाई की
रात से ख़ूब आशनाई की।
बात की आपकी जुदाई की।
और मजबूरियाँ रहीं होंगी,
बात मुमकिन न बेवफ़ाई की।
खूबियाँ कोहिनूर वाली हैं।
बस ज़रूरत जरा घिसाई की।
प्यार तू किस तरह निभायेगा,
फ़िक्र करता है जगहँसाई की।
ओढ़ जो सो गया थकन अपनी,
क्या ज़रूरत उसे रजाई की।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र
Sunday 13 March 2016
कम से कम
कुछ हुए काम के हादसे कम से कम।
सामने आ गए दोगले कम से कम।
वो भले आपसे दूरियाँ मानते,
आप तो प्रेम से बोलते कम से कम।
फूल सा बन, कोई तोड़ ले ग़र तुझे
दूर तक खुशबुएँ घोल दे कम से कम
ऐ ख़ुदा तू मिला दे ख़ुदा से मुझे,
इक दफा ही सही वो मिले कम से कम।
आप खंज़र लिए घूमने लग गये,
वक़्त का फ़ैसला देखते कम से कम।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
Saturday 12 March 2016
बसाया कीजिये
दर्द को दिल में बसाया कीजिये।
आँख से यूँ मत बहाया कीजिये।
बूँद जैसे बन गई रह सीप में,
दर्द को मोती बनाया कीजिये।
चाँद आता है तुम्हीं को देखने,
शाम को खिड़की पे आया कीजिये।
झूठ सुनने की बुरी लत छोड़िये ,
यूँ न सच पे तिलमिलाया कीजिये।
हम हक़ीक़त जान लेते हैं सनम,
आप अफ़साने सुनाया कीजिये।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
Wednesday 9 March 2016
छटने लगी है।
आइने से धुंध अब छँटने लगी है।
जो हक़ीक़त है मुझे दिखने लगी है।
देशद्रोही सोच जो बोई गई थी,
एक ज़हरीली फ़सल पकने लगी है।
और कब तक छुप रहोगे आवरण में,
अब बनावट की परत हटने लगी है।
एक सूरज सत्य का अब उग रहा है,
मोमबत्ती झूठ की बुझने लगी है।
देख कर हैरान हैं थोथे मसीहा,
बीच की खाईं ज़रा पटने लगी है।
Tuesday 8 March 2016
शराफ़त के रास्ते
जब हों हरेक सिम्त अदावत के रास्ते।
कैसे चलें ज़नाब शराफ़त के रास्ते।
जब साथ में चले तो कहाँ नाम मिल सका,
शोहरत मिली तमाम ख़िलाफ़त के रास्ते।
देकर उसे लग़ाम फज़ीहत बचाइए,
अब चल पड़ा ग़ुलाम बग़ावत के रास्ते।
ये कौन कह गया कि खिले फूल हैं इधर,
मुझको मिले बबूल मुहब्बत के रास्ते।
ज़न्नत नसीब मस्ज़िद मंदिर गए बिना,
अंजान एक बुज़ुर्ग की ख़िदमत के रास्ते।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
Monday 7 March 2016
गृहिणी दीदी आह्वान गीत
आह्वान गीत
बनकर सबला आँखों में सम्मान लिखो गृहिणी दीदी।
बिंदिया जैसा माथे पर अभिमान लिखो गृहिणी दीदी।
थामो बढ़कर ध्वजा दिखा दो जन-जन को अपनी हस्ती
हर नारी में एक सरस्वति दुर्गा औ लक्ष्मी बसती
कर दे युग परिवर्तन वो अभियान लिखो गृहिणी दीदी।
उन्नति के नीलगगन पहुँचो तुम श्रम के पंख लगा लो
फिर नए नए प्रतिमान गढ़ो जागृति की अलख जगादो
भाग्य लकीरों में अपना संधान लिखो गृहिणी दीदी।
चलकर संघर्षो के पथ पर ही सृजन नया होता है,
माली के हक़ में तब प्रतिदिन इक सुमन नया होता है।
आगे पथिकों हित राहें आसान लिखो गृहिणी दीदी।
अब तक ठोकर सही मगर अब राह बना लो एक नई
एक राह से ही निकलेंगी फिर उन्नति की राह कई
अपनी हिम्मत से नूतन सोपान लिखो गृहिणी दीदी।
अपने पैरों चल दो अब औरों का आलंबन छोड़ो
बहुत उजाला जीवन में अंधेरे का अब भ्रम तोड़ो
बनकर ख़ुद सूरज जैसा दिनमान लिखो गृहिणी दीदी।
श्वेत शक्ति के इस प्रयास को सादर नमन 'प्रसून' करे
प्रगति संगठन इसी भाँति दिन दून रात चौगून करे
स्वाभिमान से जीवन का जयगान लिखो गृहिणी दीदी।
Thursday 3 March 2016
आसमान पर होगा
एक उजड़ा हुआ शज़र होगा।
यार कैसे वहाँ गुजर होगा।
चाँद ग़ुम है ये रौशनी कैसी?
रात पर आपका असर होगा।
साथ हम भी वहाँ वहाँ होंगे,
वक़्त का कारवाँ जिधर होगा।
रात भर तू कहाँ रहा बेटा?
आपका पूछना ज़हर होगा।
एक बस दिल सजा करीने से,
और कमरा तितर बितर होगा।
इश्क़ की राह चल पड़ा तो है,
दाँव पर बोल दिल 'के सर होगा।
आज परवाज़ दे रही क़िस्मत,
आज वो आसमान पर होगा।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
नारी पर हाइकु
नारी सजाती
जीवन फुलवारी
माधुर्य सींच
नारी-तुलसी
मिलकर सँवारी
आँगन क्यारी
कोकिल स्वर
गृहिणी के गीतों से
गुंजित घर
कोमल मन
बदन मखमली
नाज़ुक कली
लाडो तितली
बतियाँ चुलबुली!
शहद घुली
शांत सतह
छुपाये ज्वार भाटा
नारी हृदय
ममता घन
वात्सल्य की पवन
वर्षा सघन
साड़ी लिपटी
सघन संवेदना
दया,करुणा
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.