Sunday 29 January 2017

रानी पद्मिनी: कविता

जौहर की ये राजपुताना परंपरा गौरवशाली
क्या जाने इतिहास हमारा कोई मूरख भंसाली

स्वाभिमान सम्मान जान से बढ़कर हमको प्यारा है
अत्याचारी पापी तो हर युग में हम से हारा है

झूठ कहानी गढ़ कायर को नायक नहीं बना सकते
ख़िलजी जैसे नालायक को लायक नहीं बना सकते

सबला हैं  नारी ये रानी पद्मावती दिखाती हैं
ये कहानियाँ नारी प्रति सम्मान भाव सिखलाती हैं

स्वर्णिम पन्ने बीते कल के काले करने से पहले
बॉलीवुड ले  समझ न पर्दे फट जाएँ ये रूपहले

ये इतिहास मिटाने वाला खेल नहीं चल पाएगा
अब वो आग जलेगी जिसमें हर ख़िलजी जल जायेगा

घर घर से इस युग की  पद्मावती  निकल कर आयेगी
जो ख़िलजी के पाले में हैं उनको सबक सिखाएगी

इससे पहले काली का फिर खड्ग दुबारा जाग उठे
पुण्य प्रतीक मिटाने वालों को हरने की आग उठे

अभी सँभल जाओ गौरव से स्वाभिमान से मत खेलो
अच्छा है करनी सेना के थप्पड़ से शिक्षा लेलो
    :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
   फतेहपुर उत्तर प्रदेश

Sunday 8 January 2017

मैं फ़साने प्यार के बुनता हुआ

कोशिश A के अन्तर्गत
मैं फ़साने प्यार के बुनता हुआ
दरमियाँ दीवार के चुनता हुआ
मान लेता हार ग़र दिखता नहीं
आसमाँ मुझको ज़मीं छूता हुआ
नाम मेरा दूर तक पहुँचा मगर
मैं तुम्हारे नाम पर अटका हुआ
तितलियाँ क्यूँ छोड़ गुलशन को चलीं
अब हवाओं में ज़हर ज़्यादा हुआ
फिर पलट सकता है बाज़ी याद रख
एक प्यादा अंत तक पहुँचा हुआ
         :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

Thursday 5 January 2017

221 2121 2121 212
थोड़ा सा मैं बबूल हूँ तो फूल भी तो हूँ
मक़बूल भी तो हूँ

Sunday 1 January 2017

बदलते रहे

वो क्यों बोलने में सँभलते रहे
लगा मुझको सच वो निगलते रहे
वहाँ ख़ास की पूछ होती रही
मियां आम थे हम तो टलते रहे
मिरी ज़िन्दगी की कहानी छपी
रिसाले हज़ारों निकलते रहे
छपा था जो अन्दर वही रह गया
कवर पेज लेकिन बदलते रहे
पता था मुझे झूठ बोला गया
ये मज़बूरियां थी बहलते रहे
    :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'