Wednesday 1 May 2013

आऊँगी ना लौट दुबारा

(हैवानों का शिकार हुई मासूम बहनों की ओर से)


डूब गया इक नन्हा तारा।
हैवानों से जीवन हारा।।
मुश्किल से आँखें खोली थी,
अंतिम बारी फिर रो ली थी,
ज़्यादा कुछ वह कह न पायी,
छुटकी बस इतना बोली थी,
पापा मेरी क्या ग़लती थी,
अंकल ने क्यूँ मुझको मारा?
मेरे जाने पर मत रोना,
होंठो की मुस्कान न खोना,
मुझको बस चिंता इतनी ही,
मेरे भैया मेरे सोना,
दूज और रक्षाबंधन को,
कौन करेगा तिलक तुम्हारा।
मम्मी मेरे बिन रह लेना,
मैं जाती हूँ दुःख सह लेना,
कहना-सुनना जो बाकी हो,
सपनों में अब कह-सुन लेना,
दुनिया मम्मा गन्दी कितनी,
आऊँगी ना लौट  दुबारा।
               रचनाकार-प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
                               फतेहपुर उ.प्र.
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