कभी श्यामल घटाओं से घिरी फिर रात ना होगी
समंदर झील नदियों ताल की फिर बात ना होगी
अगर पेड़ों को काटोगे बिना सोचे बिना समझे
तो यारों इस धरा पर फिर कभी बरसात ना होगी
झूम कर मेघ कोई छत पे जब बरसता है
मुझको लगता है मेरे हाल पे वो हँसता है
साथ भीगे थे कभी जैसे बारिशों में हम
भीग जाने को फिर से मन मेरा तरसता है
नाम धरती के अपनी सारी ज़वानी लिख दी
मिटा के ख़ुद को मोहब्बत की निशानी लिख दी
जो मेरी आँख की कोरों में आ के ठहरी थी
बादलों ने बरस के वो ही कहानी लिख दी
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