Wednesday 8 March 2017

मंज़ूर करती है

1222 1222 1222 1222
सियासत की गली बेनूर को पुरनूर करती है
यहाँ तो बदज़ुबानी भी बहुत मशहूर करती है
उखाड़ो फेंक दो काँटा किसी के दर्द का वायस
रवायत जो कि औरत जात को रंजूर करती है
पता है मछलियों को एक दिन काँटा फँसा लेगा
मगर ये भूख फँसने के लिए मज़बूर करती है
कहीं ये क़ामयाबी दूर अपनों से न ले जाये
यही यक बात मेरे हौसले को चूर करती है
तुम्ही मुंसिफ़ अगर तन्हाइयां लिख दीं मिरे हक़ में
तुम्हारा फ़ैसला ये ज़िन्दगी मंज़ूर करती है
       :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

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