Thursday 29 December 2016

क्यूँ नहीं लेते

221 2121 1221 122
रिश्तों में रंग फिर से चढ़ा क्यूँ नहीं लेते
गिरते हुए मकाँ को बचा क्यूँ नहीं लेते
वो हँस रहे हैं देख तुम्हें अश्क़ बहाते
ये दर्द दुश्मनों से छुपा क्यूँ नहीं लेते
बाहर जो बात जायेगी तो और बढ़ेगी
आँगन में ही ये बात बना क्यूँ नहीं लेते
मौका है दूरियाँ मिटा के प्यार जगाओ
रूठे जो उनसे हाथ मिला क्यूँ नहीं लेते
भूखा पड़ा जो उसको खिला करके निवाला
है बेशकीमती जो दुआ क्यूँ नहीं लेते
      :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
       फतेहपुर उ.प्र.

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