वो क्यों बोलने में सँभलते रहे
लगा मुझको सच वो निगलते रहे
लगा मुझको सच वो निगलते रहे
वहाँ ख़ास की पूछ होती रही
मियां आम थे हम तो टलते रहे
मियां आम थे हम तो टलते रहे
मिरी ज़िन्दगी की कहानी छपी
रिसाले हज़ारों निकलते रहे
रिसाले हज़ारों निकलते रहे
छपा था जो अन्दर वही रह गया
कवर पेज लेकिन बदलते रहे
कवर पेज लेकिन बदलते रहे
पता था मुझे झूठ बोला गया
ये मज़बूरियां थी बहलते रहे
:प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
ये मज़बूरियां थी बहलते रहे
:प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
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