2122 2122 2122 212
या मुझे तू ऐ ख़ुदा अब इश्क़ का अंज़ाम दे।
या मुझे बेइंतेहा इस दर्द से आराम दे।
आदमी अब कौन है अपनी नज़र में सब ख़ुदा,
अब फ़क़ीरी से अलग ही और कुछ तू काम दे।
मुफ़लिसी के ये अँधेरे अब सहे जाते नहीं,
तू उजाले दे न दे बस मौत की इक शाम दे।
ग़ैरमुमकिन है नहीं कुछ दौर है बाज़ार का,
चीज़ हर मिल जायगी बस तू मुनासिब दाम दे।
और तुझसे कुछ नहीं अब माँगता हूँ बस ज़रा
रोशनाई दे कलम में कुछ अदब में नाम दे।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
8896865866
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