Tuesday 16 February 2016

नमिता भरद्वाज जी की कला को समर्पित


------------------------------------------------
ब्रश ने तुम्हारी
उंगलियां पकड़
सीख लिया चलना
भावनाओं ने सीख लिया
रंगों में ढलना
उतर आये कैनवस पर
कुदरती अहसास
यूँ ही नहीं हो जाती होगी
हर चित्र में एक कहानी
जीना पड़ता होगा
उसे उकेरने तक
एक पूरी ज़िंदगानी
ठीक वैसा पवित्र है
चित्र बनाना
जैसा सच कहना
खुशबू सा उड़ना
नदी सा बहना
कुदरत हाथो में लकीरो से
लिखती है सब कुछ
और कला कागज़ पर.....
लकीरों से
उतार देती है कुदरत
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून

No comments:

Post a Comment