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वहीं पर वो सितमग़र होता है साहब।
जहाँ पर इश्क़ खंज़र होता है साहब।
ज़रा सा बात कर लेना बुज़ुर्गों से,
किताबी ज्ञान बंज़र होता है साहब।
जहाँ तुमको दिखा इक अश्क़ हो केवल,
वहाँ भी इक समन्दर होता है साहब।
मिला है जो उसे पाकर ज़रा तू हँस,
जुदा सबका मुक़द्दर होता है साहब।
कभी हँसता कभी रोता कभी चुप ही,
इसी का इश्क़ में डर होता है साहब।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उत्तर प्रदेश
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