1121 2122 1121 2122
इक बार सह चुका हूँ अब मत सता दुबारा।
अब क्या ख़ता हुई है फिर से बता दुबारा।
जो दूर हो गए तो अब पास भी न आना,
टूटा हुआ जुड़ा है कब आइना दुबारा।
जो ख़्वाब खो गया था फिर मिल गया अचानक,
फिर बाद मुद्दतों के एक ख़त लिखा दुबारा।
हो ज़र्द गिर गए हैं पत्ते सभी शज़र के,
फिर से नए सफ़र को पंछी उड़ा दुबारा।
जो सर 'प्रसून' अब तक अकड़ा रहा अकड़ में,
लाठी पड़ी समय की वो सर झुका दुबारा।
प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उत्तर प्रदेश
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