Saturday 20 February 2016

रू ब रू


प्यास मिटती रहे तुम रहो रू-ब-रू।
और दिल की नहीं एक भी आरजू।

तू समन्दर नहीं तो बता और क्या?
बादलों को रही क्यूँ तिरी जुस्तजू।

दे गई ये मुहब्बत कई एक ग़म,
सब उड़ा ले गई फूल के रंग बू।

याद मुझको रहीं बात बस यार दो।
एक बस यार रब और बस एक तू।

कौन सा नूर है ऐ ख़ुदा प्यार में,
ये जहाँ भी रहे फैलता चार सू।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.

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