Sunday 25 June 2017

मेरा मन साथ देता ही नहीं

मेरा मन साथ देता ही नहीं है
समय के साथ चलना चाहता हूँ
न यादों से निकल पाया अभी तक
तुम्हारे साथ मन, मैं अन-मना हूँ

न  भाती   हैं    मुझे    रंगीनियां   भी
न  तो  ये   शोरगुल  बाजार  का  ही
न मुझ पर  है  असर बदले  जहाँ का
असर अब तक है केवल प्यार का ही

अधूरे प्यार की मैं वेदना हूँ

समन्दर हूँ अतुल जलराशि मुझमें
बुझा पाया न लेकिन प्यास तक मैं
ज़मी की धूल सा लिपटा हुआ था
न बन पाया तभी अहसास तक मैं

बहुत रोया मगर मैं अनसुना हूँ

हमेशा साथ रहती हैं भले ही
न कोई पूछता परछाइयों को
कहाँ परवाह खंडित सूत्र की हो
खोजते लोग बिखरी मोतियों को

भग्न उस सूत्र की संवेदना हूँ
                       :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

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