बिनु मसि बिनु कागद
प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून' का साहित्य को समर्पित ब्लॉग
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Thursday 25 August 2016
उतने बदले रूप।
जितनी पड़ीं ज़रूरतें, उतने बदले रूप।
तू अर्जुन की छाँव है, दुर्योधन की धूप।।
कैसे इस उपकार को, भूलेगा संसार।
एक कृष्ण के जन्म से , पापी मिटे हज़ार।।
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