Saturday 13 August 2016

अब कुछ तो

1222 1222 1222 1222
बहुत दिन बाद  ये भरने लगा है घाव अब कुछ तो।
हमारे देश में दिखने लगा बदलाव अब कुछ तो।
दिलों के दरमियाँ पैदा हुई थी दूरियाँ कितनी,
जो मन की बात कह दी कम हुआ अलगाव अब कुछ तो।
बरसने से लगे डरने जो कड़वे बोल ये बादल
नदी में नफरतों की आ गया ठहराव अब कुछ तो।
ज़मीं के स्वर्ग से हूरों के आशिक जा रहे ज़न्नत,
मेरे कश्मीर में कम हो रहा भड़काव अब कुछ तो।
अमीरों के लिए केवल नहीं सरकार चलती है,
गरीबों के लिए होने लगे प्रस्ताव अब कुछ तो।
   :प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

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