बेवज़ह रो रो के सूरत क्यों बुरी कर लीजिये।
दर्द को भी ख़ूबसूरत शायरी कर लीजिये।
आपका भी नाम मंचों में चलेगा ख़ूब तब,
शायरी के नाम पर जो मसख़री कर लीजिये।
जब अँधेरा ही अँधेरा हर तरफ़ दिखने लगे,
आँख अपनी बंद करिये रौशनी कर लीजिए।
आपके दिल में उजाला ख़ुद ब ख़ुद हो जायेगा,
इन अँधेरी बस्तियों से दोस्ती कर लीजिए।
लोग हैं दुश्मन अभी जो दोस्त होंगे देखना,
बस कँटीली इस ज़ुबाँ को मखमली कर लीजिये।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
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