Friday 10 June 2016

वनरोज: दोहे

नीलगाय को मारकर, रँगे खून से हाथ।
कैसा मानव धर्म यह, पशुता पशु के साथ।।

हैं मनुष्य भी तो बहुत, करते हैं नुकसान।
इन पर भी वनरोज सँग, दो बंदूकें तान।

मारो मत वनरोज को, कर लो यह संकल्प।
मानवता जीवित रहे, ऐसा रचो विकल्प।।

क्या निरीह वनरोज का, जीवन है बेमोल!
और तरीकों से करो, जनसंख्या कंट्रोल।।

तड़प तड़प कर मर गई, छौने हुए अनाथ।
मानवता मारी गई, नीलगाय के साथ।

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