Saturday 4 June 2016

पर्यावरण गीत

जिस धरती पर जन्म लिया है, उसका क़र्ज़ चुकायें।
चलो चलें हर एक मेड़ पर, इक इक पेड़ लगायें।

सूना सूना सा लगता क्यों,ये धरती का आँगन
आओ अपने श्रम से लायें,रिमझिम रिमझिम सावन
सूखी बंजर धरती पर हम,चादर हरी बिछायें।

गाँव गाँव हम बाग लगायें,शहर शहर फुलवारी
उपहारों में फूल न दें हम,दें फूलों की क्यारी
अगली पीढ़ी के हित में हम,अब ये रीति चलायें।

बोलो तब भौंरे क्या करते,फूल अगर ना खिलते,
उपवन अगर न होते,कान्हा राधा कैसे मिलते
पावन प्रेम पगे पुष्पों में,ये ही सेज सजायें।

अगर सचेत हुए तो खोया,भी हासिल हो सकता,
आँखें मूँद अगर बैठे तो,कल मुश्किल हो सकता
ठोकर लगने से पहले ही,अच्छा है जग जायें।
   प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

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