आइने से धुंध अब छँटने लगी है।
जो हक़ीक़त है मुझे दिखने लगी है।
देशद्रोही सोच जो बोई गई थी,
एक ज़हरीली फ़सल पकने लगी है।
और कब तक छुप रहोगे आवरण में,
अब बनावट की परत हटने लगी है।
एक सूरज सत्य का अब उग रहा है,
मोमबत्ती झूठ की बुझने लगी है।
देख कर हैरान हैं थोथे मसीहा,
बीच की खाईं ज़रा पटने लगी है।
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