जब हों हरेक सिम्त अदावत के रास्ते।
कैसे चलें ज़नाब शराफ़त के रास्ते।
जब साथ में चले तो कहाँ नाम मिल सका,
शोहरत मिली तमाम ख़िलाफ़त के रास्ते।
देकर उसे लग़ाम फज़ीहत बचाइए,
अब चल पड़ा ग़ुलाम बग़ावत के रास्ते।
ये कौन कह गया कि खिले फूल हैं इधर,
मुझको मिले बबूल मुहब्बत के रास्ते।
ज़न्नत नसीब मस्ज़िद मंदिर गए बिना,
अंजान एक बुज़ुर्ग की ख़िदमत के रास्ते।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
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