आह्वान गीत
बनकर सबला आँखों में सम्मान लिखो गृहिणी दीदी।
बिंदिया जैसा माथे पर अभिमान लिखो गृहिणी दीदी।
थामो बढ़कर ध्वजा दिखा दो जन-जन को अपनी हस्ती
हर नारी में एक सरस्वति दुर्गा औ लक्ष्मी बसती
कर दे युग परिवर्तन वो अभियान लिखो गृहिणी दीदी।
उन्नति के नीलगगन पहुँचो तुम श्रम के पंख लगा लो
फिर नए नए प्रतिमान गढ़ो जागृति की अलख जगादो
भाग्य लकीरों में अपना संधान लिखो गृहिणी दीदी।
चलकर संघर्षो के पथ पर ही सृजन नया होता है,
माली के हक़ में तब प्रतिदिन इक सुमन नया होता है।
आगे पथिकों हित राहें आसान लिखो गृहिणी दीदी।
अब तक ठोकर सही मगर अब राह बना लो एक नई
एक राह से ही निकलेंगी फिर उन्नति की राह कई
अपनी हिम्मत से नूतन सोपान लिखो गृहिणी दीदी।
अपने पैरों चल दो अब औरों का आलंबन छोड़ो
बहुत उजाला जीवन में अंधेरे का अब भ्रम तोड़ो
बनकर ख़ुद सूरज जैसा दिनमान लिखो गृहिणी दीदी।
श्वेत शक्ति के इस प्रयास को सादर नमन 'प्रसून' करे
प्रगति संगठन इसी भाँति दिन दून रात चौगून करे
स्वाभिमान से जीवन का जयगान लिखो गृहिणी दीदी।
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