एक उजड़ा हुआ शज़र होगा।
यार कैसे वहाँ गुजर होगा।
चाँद ग़ुम है ये रौशनी कैसी?
रात पर आपका असर होगा।
साथ हम भी वहाँ वहाँ होंगे,
वक़्त का कारवाँ जिधर होगा।
रात भर तू कहाँ रहा बेटा?
आपका पूछना ज़हर होगा।
एक बस दिल सजा करीने से,
और कमरा तितर बितर होगा।
इश्क़ की राह चल पड़ा तो है,
दाँव पर बोल दिल 'के सर होगा।
आज परवाज़ दे रही क़िस्मत,
आज वो आसमान पर होगा।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
फतेहपुर उ.प्र.
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