दर्द को दिल में बसाया कीजिये।
आँख से यूँ मत बहाया कीजिये।
बूँद जैसे बन गई रह सीप में,
दर्द को मोती बनाया कीजिये।
चाँद आता है तुम्हीं को देखने,
शाम को खिड़की पे आया कीजिये।
झूठ सुनने की बुरी लत छोड़िये ,
यूँ न सच पे तिलमिलाया कीजिये।
हम हक़ीक़त जान लेते हैं सनम,
आप अफ़साने सुनाया कीजिये।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'
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