Monday 9 November 2015

ज़हर मेरा

यहाँ अब खौफ़ का मन्ज़र, निशाने में शज़र मेरा।
चली जो ज़ुल्म की आँधी, उजड़ जाए न घर मेरा।
ज़रा से लोग हैं वो जो अमन की बात करते हैं,
सभी की आँख में दिखने लगा मुझको ये डर मेरा।
ज़ुबाँ मेरी बहुत ज़िद्दी इसे सच बोलना ही है,
कभी इन आदतों से फिर भले कट जाय सर मेरा।
सियासत की ज़ुबाँ सीखी ज़रा सीखी अदाकारी,
दिखा है तब कहीं जाकर ज़माने में असर मेरा।
अभी तो पल रहा हूँ मैं तुम्हारी आस्तीनों में,
घुटेगा दम तुम्हारा तब गिरेगा जब ज़हर मेरा।

                   -प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

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