Sunday 8 November 2015

तितली

कई उसके दिवाने हैं कई की जान है तितली।
गुलों की पाक़ उल्फ़त का हसीं अरमान है तितली।
बड़ी मस्ती भरी उसमे न उसको फ़िक्र काँटों की,
बड़ी बेफिक्र है मासूम है नादान है तितली।
यहाँ आना सँभल कर इस फिज़ा में रेडियेशन है,
जहां की फितरतों से अब तलक अन्जान है तितली।
बहुत मुश्क़िल सहेजे रख सको रंगत परों की तुम,
किताबों में दबा रखना बहुत आसान है तितली।
कई रोते हुए बच्चे हँसाये ज़िन्दगी में वो,
भले ही देखने में वो ज़रा सी जान है तितली।

-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

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