Tuesday 10 November 2015

याद हम भी थे

कभी इन बेड़ियों से वक़्त की आज़ाद हम भी थे।
कभी ऊँची उड़ानों के बड़े उस्ताद हम भी थे।
समय की सीढ़ियों ने इस क़दर हमको थका डाला,
हमेशा मोम जैसे थे नहीं फ़ौलाद हम भी थे।
ख़ुदा बँटती रहीं जिस दर तुम्हारी रहमतें सबको,
वहीं पर यक दिए की शक़्ल में आबाद हम भी थे।
सनम तेरी मोहब्बत में हज़ारो दिल लुटे थे जब,
हमारी थी भला औक़ात क्या बर्बाद हम भी थे।
हमारी क़ब्र पर भी फूल कोई फेंक कर लौटा,
तसल्लीबख्श है चलिए किसी को याद हम भी थे।

  -प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

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