Sunday 15 November 2015

आख़िरी तक जो लड़े हैं

निमित्त संस्था ने कानपुर में आत्मबली साहित्यकारों का सम्मान किया। ऐसे साहित्यकार जो शारीरिक अक्षमता को मात देकर साहित्यिक साधना कर रहे हैं और साहित्य क्षेत्र में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं।इस क्रम में आचार्य अम्बिकेश शुक्ल , डॉ. गिरीश कुमार श्रीवास्तव, श्री सुशील पाण्डेय, एवं पीयूष द्विवेदी पुतु का सम्मान किया गया।संस्था निमित्त इस अनूठे कार्यक्रम के लिए बधाई की पात्र है।मैं इस कार्यक्रम का साक्षी बनकर गौरवान्वित हूँ।इन आत्मबलियों के सम्मान में मेरी एक ग़ज़ल समर्पित है।

यकीनन देखने में तो कई आलू बड़े हैं।
मगर सच मानिये साहब वही अन्दर सड़े हैं।
समझ लाचार जिनको एक कोने में बिठाया,
स्वयं के आत्मबल से आज पैरों पर खड़े हैं।
क्षितिज इतिहास में लिक्खी गईं उनकी उड़ानें,
परिंदे आँधियों से आख़िरी तक जो लड़े हैं।
हमें बहलाइये मत झूठ के किस्से सुनाकर,
पता रखिये हमारे चाँद पर झंडे गड़े हैं।
नहीं यूँ ही पटल हिन्दी प्रकाशित हो रहा है,
चमक इसकी बताती है बहुत हीरे जड़े हैं।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

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