Thursday 5 November 2015

हठीले सपने

पहली ग़ज़ल का तीसरा शेर कानपुर की कवयित्री डॉ भावना तिवारी की क्षणिका
मुआवज़ा बँटा
वर्णमाला के अक्षरों के हिसाब से
गिनती में
हरिया फ़िर छूट गया ।
से प्रेरित है और उन्हीं को समर्पित भी।
दूसरी ग़ज़ल का मक़्ता (अंतिम शेर)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को समर्पित।
रात जहाँ थी, रात वहीं पर।
बात जहाँ थी, बात वहीं पर।
कितने मौसम बदले लेकिन,
अश्कों की बरसात वहीं पर।
राज ताज़ सब बदल चुका है,
हरिया के हालात वहीं पर।
खेल ज़िंदगी खतरे पल-पल,
ज़रा चूक तो मात वहीं पर।
सौ माले सँग खाक मिल गई,
इन्सां की औकात वहीं पर।
-प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'



गुम से गए सजीले सपने।
गीली आँखें सीले सपने।
समझौता अब सीख चुके हैं
थे तो बहुत हठीले सपने।
ढली उम्र गिन रही बैठ कर
आँखों के पथरीले सपने।
उम्मीदों की मृग मरीचिका,
छोड़ गई रेतीले सपने।
मेरे साथ सफर में खोये,
तेरे भी रंगीले सपने।
पापा की कोशिश पूरे हों,
छुटकी के नखरीले सपने।
नव 'प्रसून' देंगे दुनिया को,
मेरे यही कँटीले सपने।

   -प्रवीण श्रीवास्तव 'प्रसून'

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