Monday 13 August 2012

तांका

 बेरोजगार
आँखों में नाउम्मीदी
पाँव में छाले
डिग्रियों के पुलिंदे
चांट रहे दीमक
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मैं अखबार
मुझ पर छपा है
लूट, डकैती,रेप
मत पढो मुझे
जलने दो आग में
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किसान भूला
रोपाई वाला गीत
ढोल की थाप
प्रतिस्पर्धा का दौर
तनाव मेँ जीवन

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घमंड टूटा
घन बन बरखा
धरा पे गिरा
छूट गया  आकाश
यूँ  न  उड़ता काश!
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कच्चे घरौंदे
छोटे छोटे सपने
जो था सच था
सुनहरा महल
यहाँ सब दिखावा    

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