पिंकी के पापा आफिस से आने के बाद शनिवार को ही प्लान बनाने लगे .कल बेटा मैं और ममा तीनो लोग मूवी देखने चलेंगे
ओ.के.......पूरा
अरे चल आगे बढ़ छुट्टे नहीं हैं...पापा ने हड़काया.
पिंकी के मुह से निकल पड़ा अरे पापा अभी तो टिकट लेने में चेंज बचे हैं ना!
अरे बेटा इस तरह एक-एक रुपये देने लगे तो धीरे-धीरे दस बीस खर्च हो जाते हैं,कहते हुए पिंकी का हाथ पकड़े अन्दर दाखिल हो गए.
मूवी शुरू होने से पहले ही कैंटीन वाला लड़का अन्दर आया
कोल्ड्रेंक.....
...चेप्स....कोल
पिंकी के पापा ने तीन कोल्ड्रिंक तीन चिप्स पैकेट ले लिए.
कितने का हुआ..?पापा ने पूँछा.
एक सौ पचास....लड़का बोला
कोल्ड्रिंक कितने की लगाया.
तीस रुपये..... लड़के ने जवाब दिया.
पिंकी के पापा ने जेब से पैसे निकाल कर दे दिए.
पिंकी फिर बोल पड़ी..पर पापा ये कोल्ड्रिंक तो बाहर दस रुपये में मिलती है
अरे बेटा सब ठीक है एन्जॉय करने आये हैं ऐसे तो दस-बीस खर्च होते ही रहते हैं क्या फर्क पड़ता है.....कहते हुए पापा स्क्रीन में नज़रे गड़ाए रहे.पिंकी कोल्ड्रिंक को मुंह में लगाये सोच में डूबी रही.
-प्रवीण कुमार श्रीवास्तव ,फतेहपुर उ.प्र.
बहुत अच्छी लघुकथा है !!
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