Saturday 11 August 2012

अहमियत


पापा के न रह जाने पर सोनू माँ को शहर ले आया.जब से सोनू को नौकरी मिली थी.माँ एकाध बार ही दो या तीन दिनों के लिए बेटे के पास रही थी.सोनू की शादी गाँव से ही हुई थी.बहू शहर की थी,इसलिए गाँव की जीवन शैली रास नहीं आई और ज़ल्दी ही वह जिद कर सोनू के साथ शहर जाकर रहने लगी थी.माँ के लिए गाँव में इतना अधिक काम भी न था की कोई ज्यादा समस्या होती खेतीबाड़ी का काम सोनू के पिता ही देख लिया करते.हाँ ....बस एक ही समस्या थी,जब सोनू के पिताजी बाहर होते तो घर का अकेलापन माँ को सालता था और रह-रह कर उसके मन मष्तिष्क में पुराने कष्ट भरे दिनों की यादें उमड़-घुमड़ जातीं.कितने मुश्किल के दिन काटे थे.जवानी गृहस्थी सँभालते कब विदा हो गई पता ही न चला.लेकिन लाख परेशानियों के बाद भी सोनू की पढाई अवरुद्ध नही हो पाई थी.खैर अब सब ठीक चल रहा था पर अचानक सोनू के पिता जी के न रह जाने पर माँ टूट गई थी.सोनू ज़बरदस्ती कर के माँ को शहर में अपने पास ले आया था.यहाँ माँ का मन भी काफी हद तक लग गया था.आज सुबह से ही माँ बड़ी व्यस्त थी.कल ही तो सोनू ने बताया था उसके बॉस घर आ रहे हैं डिनर पर.माँ बहू के साथ मिलकर किचन का सारा काम निबटा रही थी.अचानक जो छः कप बहू ने चाय के लिए निकाल कर रखे थे उनमे से एक अचानक माँ का हाथ लगने से गिरकर चकनाचूर हो गया.बहू दौड़ कर अन्दर आई और ओफ्फ...ओह..कह कर बाहर सोनू के पास जाकर कहने लगी-यार सब गड़बड़ हो गया.सोनू चौककर बोला क्या हुआ?जो मंहगा वाला कप का सेट हम लोग सुपर मार्केट से लाये थे न..माँ ने तोड़ दिया.ओह सिट यार..उसी में तो मेहमानों को चाय देनी थी सोनू परेशान हो गया.मंहगे की बात नहीं है सेट बिगड़ गया...आवेश में दोनों अपनी आवाज़ भी धीमी न रख सके थे.माँ किचन के दरवाजे की ओट में खड़ी अपनी और मेहमानों की अहमियत का अंतर तोल रही थी.
-प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
ग्राम-सनगांव,पोस्ट-बहरामपुर,
जिला-फतेहपुर,उ.प्र.२१२६२२
मो.-९०२६७४०२२९,

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